सुब्ह-ए-आज़ादी (अगस्त-47) - संपूर्ण नज़्म ऑडियो एवं वीडियो के साथ बोलतेचित्र पर | The Dawn Of Freedom (August-47) Partition Poem In Hindi Faiz
सुब्ह-ए-आज़ादी (अगस्त-47) – फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ | THE DAWN OF FREEDOM (AUGUST-47) – FAIZ AHMED FAIZ
सुब्ह-ए-आज़ादी (अगस्त-47) – संपूर्ण नज़्म ऑडियो एवं वीडियो के साथ बोलतेचित्र पर | THE DAWN OF FREEDOM (AUGUST-47) – COMPLETE NAZM WITH LYRICS, ALONG WITH ITS AUDIO AND VIDEO, AT BOLTECHITRA
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ – संछिप्त परिचय
13 फरवरी १९११ – 20 नवंबर १९८४, भारतीय उपमहाद्वीप के एक विख्यात पंजाबी शायर. क्रांतिकारी रचनाओं में रसिक भाव (इंक़लाबी और रूमानी) के मेल की वजह से जाना जाता है. सेना, जेल तथा निर्वासन में जीवन व्यतीत किया. कई नज़्म, ग़ज़ल लिखी तथा उर्दू शायरी में आधुनिक प्रगतिवादी (तरक्कीपसंद) दौर की रचनाओं को सबल किया. नोबेल पुरस्कार के लिए भी मनोनीत किया गया. कई बार कम्यूनिस्ट (साम्यवादी) होने और इस्लाम से इतर रहने के आरोप लगे पर उनकी रचनाओं में ग़ैर-इस्लामी रंग नहीं मिलते. जेल के दौरान लिखी गई कविता ‘ज़िन्दान-नामा’ को बहुत पसंद किया गया. उनके द्वारा लिखी गई कुछ पंक्तियाँ अब भारत-पाकिस्तान की आम-भाषा का हिस्सा बन चुकी हैं, जैसे कि ‘और भी ग़म हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा’.
सुब्ह-ए-आज़ादी (अगस्त-47) नज़्म के बारे में दो शब्द
“सुब्ह-ए-आज़ादी (अगस्त-47) | The Dawn Of Freedom (August-47)” प्रतिभाशाली उर्दू कवि फैज अहमद फैज की रचना है. ये भारत/पकिस्तान विभाजन की त्रासदी और 1947 में उस आम जनता, जो ऐतिहासिक घटनाओं के दुनिया भर में फैले चक्रवात के बीच जिसमे, सामूहिक जातिगत आधार पे नरसंहार, शरणार्थी संकट, सांप्रदायिकता, बलात्कार, और विभाजन की भयावहता थी, में फसे थे, उनके दुःख को बयान करती है.
यह पंडित नेहरु के ऐतिहासिक प्रसिद्ध भाषण “भाग्य के साथ भेंट” का जवाब देती हुई दिखती है. आज भारत/पकिस्तान की आजादी के इतने वर्षो बाद “सुब्ह-ए-आज़ादी” हमे याद दिलाती है की अभी भी हम सभी को “सुब्ह-ए-आज़ादी” की खोज करते रहना है, जिस तरह के हालत में, दक्षिण एशिया की भोर परमाणु बमों के परीक्षणों के धुएं से भरी है और पूंजीपतियों के खजाने भरते जा रहे है और एक तरफ किसान आत्महत्या कर रहे है और गरीबी अपने चरम पे है तो ये वो आजादी की सुबह नहीं है जिसकी हम आशा कर रहे थे. पर कविता की आखरी पंक्ति पे ध्यान दे के पढ़े, जो हमे निराशा के क्षणों में आशा की किरण दिखाती है.
यहाँ 7 बोलतेचित्र दिए है जो उनकी नज्म सुब्ह-ए-आज़ादी (अगस्त-47) – फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ से है.